Raag ka antraag - 1 in Hindi Moral Stories by Amita Neerav books and stories PDF | राग का अंतर्राग - 1

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राग का अंतर्राग - 1

अमिता नीरव

1

कमरे में सुबह की हल्की-सी रोशनी आ रही थी। बड़े शहरों के फाइव स्टार अपार्टमेंट में खिड़कियाँ तो बड़ी-बड़ी होती है, लेकिन उन पर पर्दे भी उतने ही मोटे पड़े रहते हैं। रोशनी तो चाहिए, लेकिन धूप नहीं.... सब कुछ सुविधानुसार चाहिए, या स्वादानुसार। शुभ की आँखें खुली तो देखा हानिया बेड के किनारे पर बैठकर अपने शूज के लैस बाँध रही थी। उसने झुककर हानिया की खुली कटावदार कमर को चूम लिया, उसने प्यार से मुस्कुराकर उसे देखा तो, शुभ ने शरारतन काट लिया। हानिया की हँसी छन्न से टूटे काँच की तरह पूरे कमरे में बिखर गई। शुभ ने उठकर उसकी हँसी को अपने होंठों में समेट लिया, हानिया के स्टेप कट बालों से शुभ का चेहरा ढँक आया। कमरे में फिर से रात घिर आई।

अपने कपड़ों को समेटे हानिया बाथरूम चली गई। शुभ बेड पर यूँ ही लुढ़क गया। इतना भर जाने के बाद भी न जाने वह क्यों अतृप्त है? वह एकाएक बहुत उदास हो गया। हानिया मुस्कुराती हुई उसके करीब आई। उसके चेहरे पर अपने गीले बालों को झटककर कॉर्नर टेबल पर पड़े अपने इयररिंग पहनने लगी। शुभ बस मुस्कुराकर रह गया।

अपने बालों को ब्रश करते हुए हानिया ने पूछा था - 'तो.... वीकएंड पर क्या करने वाले हो?'

शुभ ने उसकी तरफ देखते हुए बहुत तटस्थता से कहा - 'कुछ नहीं।'

हानिया आश्चर्य से पलटी थी, उसने बहुत गौर से शुभ को देखा। - 'तो मैं जाऊँ?'  उसने बहुत उम्मीद में भरकर पूछा था।

शुभ ने करवट लेकर कहा - 'हाँ....।'

हानिया बुझ गई। आहत हानिया ने अपना सामान समेटा और बिना कुछ कहे निकल गई। शुभ बहुत देर तक यूँ ही पड़ा रहा। हर वीकएंड पर कुछ-न-कुछ प्रोग्राम तो रहता ही है। इस बार भी शाकिब ने कहा था, लेकिन शुभ ने इंकार कर दिया।

'नहीं यार... आई नीड टू रेस्ट.... मैं बहुत थका हुआ फील कर रहा हूँ।' - शुभ ने कहा था। जाने क्या-क्या याद आ रहा है उसे आज। कल रात की पार्टी में जब हानिया ने उससे कहा था कि 'आई एम कमिंग वीथ यू'  तो शाकिब के चेहरे पर फैली मायूसी... एक दिन शाकिब ने उससे पूछा था 'आर यू सीरियस वीथ हानिया?' - तब शुभ ने समझा नहीं था, कि वह ऐसा क्यों पूछ रहा है?

'कम ऑन.... नो'- शुभ ने चिढ़कर कहा था।

'दैन व्हाइ आर यू प्लेईंग वीथ हर.... तुम्हें दिखता नहीं दैट शी इज वेरी मच इन लव वीथ  यू....?' - उसने बहुत तल्खी से शुभ से कहा था।

'तो.... मैं क्या करूँ? मैंने उससे न कभी ऐसा कुछ कहा और न ही इस तरह का कोई कमिटमेंट ही किया। दैट इज हर प्रॉब्लम.... नॉट माइन...।' - शुभ उसे झटककर लौट तो आया, लेकिन उसे समझ नहीं आया कि शाकिब ने उससे ये सब क्यो कहा? आज उसे समझ आ रहा है। शाकिब हानिया को पसंद करता है। शुभ को अपराध बोध सालने लगा।  छुट्टी की शुरुआत ही बेचैनी से हुई। उसने कॉर्नर टेबल की ड्रॉज में से सिगरेट निकाली और सुलगा ली।

सब कुछ तो है तेरे पास.... फिर क्या बेचैनी सताती है? शुभ समझ नहीं पाता। अभी चार महीने ही तो हुए हैं वह मियामी होकर आया है। १५ दिन रहा था, वहाँ। जो भी मस्ती हो सकती थी, सब किया। लेकिन देखो चार महीने बाद फिर वहीं पहुँच गया। हानिया अच्छी लड़की है और शाकिब सही कहता है... लेकिन वह क्या करे कि उसे प्यार जैसा कुछ महसूस नहीं होता। क्या करे वह....? प्यार की चिंता किए बिना ही क्या उसे शादी कर लेनी चाहिए? या फिर लिव-इन....? लेकिन लिव-इन भी तो प्यार के बाद की स्टेप है। उसे किसी से प्यार क्यों नहीं होता? और प्यार होना किसे कहते हैं? हानिया उसे भाती है, उसकी हँसी, उसके बाल, उसकी चाल.... उसका खूबसूरत शरीर...। उसका स्वभाव,  ड्रेसिंग सेंस.... बिहेवियर.... क्या नहीं है उसके पास। फिर भी कुछ कम लगता है.... क्या कम है, नहीं जानता शुभ। बस कुछ कम है। अक्सर जब वह दोस्तों के बीच खिलखिलाकर मुस्कुराती है तो लगता है कि जाकर उसके होंठों को अपने होठों से भींच दूँ... कभी-कभी ये इच्छा इतनी तीखी होती है कि वह खुद को चिकोटी काटकर होश दिलाता है। फिर भी हानिया के साथ जिंदगी बसर करने का विचार उसे वाहियात लगता है। उसे हर समय हानिया के साथ होने का विचार ही डरावना लगता है। उस ने अपनी बेचैनी को झाड़ा और किचन में चला आया अपने लिए कॉफी बनाई। जब वह बाहर आया था तो बाहर हल्के बादल थे। वही बादल झरने लगे थे। कॉफी का कप लेकर हॉल में आ बैठा। मौसम में खुनक-सी घुल आई। साइड टेबल पर कप रखा और बीन बैग में धँसते हुए उसने टीवी ऑन कर लिया।

मन कहीं और था, आँखें टीवी में और ऊँगलियाँ रिमोट के बटन से खेल रही थी। कभी ऐसे कोई विचार नहीं आए। कभी अपने और हानिया के बारे में इस तरह से नहीं सोचा। कभी शाकिब से सहानुभूति नहीं हुई। आज उसके साथ सब उलटा-पुलटा हो रहा है। उसकी ऊँगली लगातार चैनल सर्फ करने के क्रम में लगी हुई थीं। एकाएक टीवी की स्क्रीन पर एक चेहरा फ्लैश हुआ.... उसकी साँसे जैसे रूक गई। ऊँगलियाँ फ्रीज हो गई... आँखों में जैसे बादल आ जमे.... वृंदा....।

टीवी पर वृंदा.... लेकिन एकदम से स्क्रीन का चेहरा बदल गया। कोई दूसरी लड़की आ गई। वह इतना सुन्न हो गया था कि कुछ भी सुन नहीं पा रहा था। दूसरी लड़की कुछ कह रही थी, वृंदा बस मुस्कुरा रही थी। उसका मुँह सूखने लगा तो उसने टेबल की तरफ हाथ बढ़ाया काफी का कप लुढ़क गया... उफ्....। वह नहीं उठा, बस उसे होश-सा आ गया।  वो लड़की पूछ रही है 'आपकी कहानी बहुत अनयूजवल है... मीन्स लड़की के दोस्त को लड़की की माँ से प्यार हो जाए! ये विचार आपको कैसे आया.... आई मीन इट्स वेरी-वेरी अनकन्वेंशनल....। और वेरी रिवोल्यूशनरी ऑलसो....।'

'नो-नो इट्स नॉट.... इफ यू रीड अमृता प्रीतम। उन्होंने लिखा है।' - वृंदा ने उसे टोकते हुए कहा। 'बट ऑय थॉट यू डोंट रीड इंडियन राइटिंग्स.... ' वृंदा के ऐसा कहते ही एंकर थोड़ी असहज हो गई।

वृंदा ने खिलखिलाकर उसे सहज किया। कैमरे ने एकाएक एक पुरुष के चेहरे पर फोकस किया। कोई ५०-५५ की वय का पुरुष, खिचड़ी दाड़ी और खिचड़ी ही बाल। गोलाकार चेहरा और लंबा छरहरा बदन। नीले रंग का कॉटन का या शायद खादी का कुर्ता पहन रखा था। सफेद चूड़ीदार पायजामा। एक पैर को मोडे और दूसरे को सामने फैलाए बहुत इत्मीनान से एंकर का सवाल सुन रहा था।

एंकर पूछ रही थी 'सर आपको ये विचार ऑड नहीं लगा?'

वो वृंदा की ओर देखकर मुस्कुराया था 'ऑड था, तभी तो कहानी ने क्लिक किया था। हमउम्र हीरो और हीरोइन की कहानियां तो बहुत यूजवल है। इन तरह की कहानियों में ट्विस्ट क्या लाया जा सकता था... वही अमीर-गरीब, विलेन... जाति-पाति.... आदि-आदि...।'

स्क्रीन पर फिर से वृंदा नजर आई। आश्चर्य है शुभ ने उसे देखा ही नहीं। वह पहले से दुबली नजर आ रही थी। बाल छोटे थे और कॉटन की यलो साड़ी पर ग्रीन बॉर्डर और ग्रीन ही ब्लाउज पहने थी। गले में हमेशा की तरह एक बारीक चेन पड़ी हुई थी और कानों में बहुत छोटे-छोटे हीरे झिलमिला रहे थे। शुभ के मन में लालसा जगी थी। अभी के अभी ही मन बदल गया।

मनस्थिति अजीब हो गई.... प्यास गहरी थी, तृप्ति का कोई रास्ता नहीं था। कितने साल हो गए.... वृंदा को देखे। कितने साल से साथ थे, याद नहीं। पहली बार कब देखा था उसे। कितनी तो छोटी थी.... अपनी फ्रॉक के घेरे में बेर लेकर आ रही वृंदा को कैसे शुभ ने धक्का देकर गिराया था। उसके सारे बेर जमीन पर गिर गए थे। बदले में उसने भी शुभ को धक्का दिया तो उसने गुस्से में जमीन पर गिरे बेर को पैरों से कुचल दिया था। कितना रोई थी वह.... बात तो कुछ थी ही नहीं। बस वृंदा के पास वाले मकान में शिफ्ट हुए थे वो लोग। शुभ को आना नहीं था, उसके सारे दोस्त रोहित, अतुल, विनय उस पुराने शहर में छूट गए थे। उसे तो पता भी नहीं था कि पापा-मम्मी उसे बिना बताए ये फैसला कर लेंगे। इस घर में शिफ्ट होने के हफ्ते भर बाद जब वह अपने स्कूल के साथियों से पिटकर आ रहा था, बस ऐन तभी तो उसे वृंदा दिखी थी। वो भी शायद स्कूल से ही आ रही थी। पढ़ती तो शुभ के ही स्कूल में थी, ये अलग बात है कि हफ्ते भर में एक बार भी उसने वृंदा को नहीं देखा? या शायद देखा हो, लेकिन मार्क नहीं किया। यूँ तो मार्क करने लायक था ही क्या उसमें? कोई दूध धुला गोरा रंग तो था नहीं। गेहुँआ रंग था, और आमतौर पर होने वाली काली आँखें। फिर दोनों की क्लास भी अलग थी। वो तो बाद में पता चला कि वो शुभ से दो साल बड़ी थी। बड़ी थी.... बस इसी एक तथ्य से दोनों के बीच की केमिस्ट्री बस अलग हो गई। हालाँकि ये तो बहुत बाद की बात है, लेकिन उस दिन जब वो घर लौटा तो बहुत बुझा, बहुत उदास और बहुत थका हुआ था। माँ के ये कहने पर कि जूते कितने गंदे करके लाए हो उसने जूता खोलकर इतनी जोर से उछाला कि चलते पंखे से टकराकर दूसरे कमरे में लोहे की अलमारी पर रखी गणपति की मूर्ति पर गिरा और वो मूर्ति नीचे गिरकर टूट गई।

माँ ने भी आपा खो दिया था। वो मूर्ति मौसी ने खासतौर पर भेजी थी गणेश चतुर्थी पर स्थापना के लिए। खूब पिटाई हुई थी। रोते-रोते सो गया था शुभ.... जब पापा ने जगाया तो बाहर बादल जोर-जोर से गरज रहे थे। नींद ने गुस्सा भुला दिया था, थोड़ा सा मलाल बचा था। माँ ने आकर शुभ को प्यार किया तो वह भी जाता रहा। पापा गर्मागर्ग गुलाब जामुन लाए थे। माँ किचन में जाकर पकौड़े तलने लगी थी। बाहर बारिश हो रही थी। वह दौड़कर खिड़की की तरफ गया तो देखा, सामने वही सुबह वाली लड़की खुले में भीग रही और नाच रही थी। शुभ उसे आश्चर्य से देखने लगा....। जब उसने शुभ को देखा तो चिल्लाई... आजा, बहुत मजा आ रहा है।

अचानक शुभ में अपराध बोध गहरा गया। अभी दोपहर में ही तो स्कूल से लौटते हुए उसने इस लड़की से लड़ाई की थी। लेकिन उसे देखकर तो लग ही नहीं रहा कि उससे झगड़ा भी हुआ है। वैसे पानी में भीगना और कीचड़ में जाना उसे कतई पसंद नहीं है। वह आज तक कभी बारिश में नहीं भीगा। ये अलग बात है कि स्कूल से आते हुए कई बार भीगना पड़ा हो, लेकिन खुशी और मन से तो कभी भी नहीं। लेकिन जिस तरह से वह लड़की गड्ढों में भरे पानी में उछल-उछल कर नाच रही थी, शुभ को लालच हो आया...  भीगने का। वह नहीं जानता था कि पीछे से पापा आकर कब चुपके से खड़े हो गए। पापा को देखकर वह लड़की चिल्लाई थी.... अंकल आप भी आ जाइए, बहुत मजा आएगा।

शुभ ने पीछे देखा तो पापा खड़े हुए थे। पापा बहुत जोर से हँसे, शुभ को आश्चर्य हुआ और न जाने क्या हुआ कि उसका मन उखड़ गया। वह लड़की उसके पापा के साथ ऐसे कैसे बात कर सकती है? जबकि मैंने तो कभी भी उसकी मम्मी के साथ बात नहीं की.... उसके पापा तो कभी दिखे ही नहीं। माँ कहती है कि विदेश में नौकरी करते हैं। करते होंगे... । लेकिन शुभ का मन उचट गया। वह वहाँ से सोने चला गया, लेकिन नींद आने तक उसके सामने वृंदा का बारिश में मस्ती करना याद आता रहा। उसने सोचा, किसी दिन वह भी बारिश में भीगकर देखेगा। क्या पता सचमुच ही मजा आता हो। लेकिन हाँ उस छछुंदर के सामने बिल्कुल भी नहीं।

उस दिन रविवार था, स्कूल नहीं जाना था, इसलिए माँ ने उसे उठाया भी नहीं जल्दी। वह जब उठकर आया तो वही छछुंदर पापा के साथ टेबल पर बैठकर नाश्ता कर रही थी। शुभ को फिर से गुस्सा आया। वह तो कुर्सी पर बैठी थी, शुभ जाकर पापा की गोद में बैठ गया। पापा मुस्कुराए... लेकिन वह जोर से हँसी। 'अभी तक पापा की गोद में ही बैठते  हो।' पापा को उसकी बात पर जोर से हँसी आ गई। शुभ को तेज गुस्सा आया और वह भनभनाता हुआ फिर से अपने कमरे चला गया।

आज शुभ उसे ठीक वैसे ही याद कर पा रहा है, जिसे अब तक उसने कभी भी रिवाइज नहीं किया था। वैसे भी वह कभी भी रिवाइज करता ही नहीं है। परीक्षा में भी ऐन परीक्षा से पहले ही पढ़ता था। माँ को हमेशा शिकायत रहती थी कि साल भर नहीं पढ़ता। हाँ, तो आज उसे यह महसूस हो रहा है कि उस दिन उसे समझ जाना चाहिए था कि वृंदा उससे बड़ी है। कितनी... इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता था, आज तक नहीं लगा पाया। यूँ हुआ कि वृंदा उसके पीछे-पीछे ही उसके कमरे में आ धमकी...। उसने शुभ से पूछा 'तुम अब तक गुस्सा हो क्या?'

शुभ को शर्म आई, झगड़ा तो मैंने किया था और अभी भी बेवजह गुस्सा करके चला आया और ये लड़की... लेकिन इतनी जल्दी गुस्सा झाड़ा भी नहीं जा रहा था। 'नहीं....' कहते-कहते शुभ रूआँसा हो गया।

'तो फिर ऐसे अचानक से ऊपर क्यों चले आए? मुझे विश भी नहीं किया! आज मेरा बर्थडे है....' -शुभ को फिर थोड़ी शर्मिंदगी हुई।  'ओह सॉरी.... लेकिन तुमने मुझे कहाँ बताया कि आज तुम्हारा बर्थडे है।' - शुभ अपनी शर्म छुपाने के क्रम में कामयाब होने का अहसास कर ही रहा था कि उसने तड़ाक से कह दिया 'तुमने मौका ही कहाँ दिया.... तुम तो तुरंत ही भाग आए।'

'ऊँ..... ' शुभ ने अपना सिर झुकाकर गलती मान ली। सुलह हो गई दोनों के बीच। यह विचार बाद के कई सालों तक नहीं आया कि वृंदा शुभ से बड़ी है। दोनों साथ-साथ स्कूल जाते, कई बार लौटते भी साथ-साथ... सिवा उन सालों के जब वो बड़ी क्लास में थी और म्यूजिक क्लास के लिए स्कूल से सीधे चली जाया करती थी।

अक्सर शाम को जब वो रियाज करती थी, शुभ को खीझ उठती थी, लेकिन पापा बॉलकनी में अक्सर आँखें मूँदे बैठे रहते थे। तब शुभ को और भी ज्यादा गुस्सा आता था। फिर वो दो-तीन दिन वृंदा को साथ लेकर नहीं जाता था, उससे बात नहीं करता था। लेकिन फिर एक दिन ऐसा होता कि उसके घर से निकलते ही वृंदा भी उसके साथ हो लेती। एक-दो दिन दोनों चुपचाप-चुपचाप चलते... फिर दोनों में सुलह हो जाती। आज शुभ सोचता है तो उसे अहसास होता है कि कैसे वृंदा उससे हमेशा ही बड़ी रही... न सिर्फ उम्र में बल्कि व्यवहार में भी और अब लगता है समझ में भी...।

शुभ उदास हो गया। पापा को भी लगता था शायद यही... तभी तो वृंदा उनकी फेवरिट थी। अक्सर वृंदा के घर आने से पापा कुछ ज्यादा ही खुश रहते थे। एकाध बार जब शुभ ने माँ से इसकी शिकायत की थी तो माँ ने मुस्कुरा कर कहा था कि 'पापा को बेटी चाहिए थी और आ गया तू....'

'तो क्या किसी को भी बेटी बना लेंगे।' - शुभ ने भुनभुनाते हुए कहा था। माँ ने सिर पर प्यार से चपत लगाई थी -'वृंदा कोई भी है...?'

जाने क्यों वृंदा को माँ भी पसंद करती थी और पापा तो.... तभी तो जब गाड़ी खरीदी थी पापा ने तो शुभ को तो बहुत हिदायतों के साथ चलाने के लिए देते थे, लेकिन जब एक दिन वृंदा ने उनसे कहा कि 'अंकल मुझे भी ड्राइविंग सीखना है।'

पापा ने शुभ को चाभी दी और आदेश ही दे दिया 'शुभ, वृंदा को गाड़ी चलाना सिखाने की जिम्मेदारी अब तुम्हारे पास है।' लो देखो, मुझे तो बहुत मुश्किल से चाभी मिलती है और यहाँ वृंदा को कितनी आसानी से दे दी। कभी-कभी ईर्ष्या भी होती थी, उससे और पापा पर गुस्सा भी आता था। लेकिन फिर....

उस दिन बहुत बकझक और चिढ़-चिढ़ के बाद शुभ उसे गाड़ी सिखाने के लिए ले गया था। बारिश के ही तो दिन थे, वो रविवार का दिन था और यूनिवर्सिटी की ओर जाने वाली सड़क पर एकदम शांति थी। गाड़ी चलाना सीखने के लिए यह शहर की सबसे मुफीद जगह है। वह बहुत बुरी तरह से भरा हुआ था.... इस सबसे बेखबर वृंदा उसे किसी न किसी बात पर खिझा रही थी।